कर्म राजा निर्दोष को छेड़ते नही और दोषी को छोड़ते नही...
हमारी आत्मा अनंत काल से कर्म राजा की कैदी बनी हुई है । कर्म राजा का कर्ज ब्याज सहित चुकाना ही पड़ेगा भले ही वह थोड़ा हो या अधिक । कर्म राजा इस जगत में कैसे-कैसे कमाल और धमाल मचाता है । *"एगया देव लोएसु , नरएसु वि एगया"* कर्मराजा कभी इस जीव को देवलोक के दिव्य सुखों की सैर करने भेज देता है तो कभी नरक में भयंकर वेदना भोगने धकेल देता है । तो कभी तिर्यंच गति में पराधीनता का दुख देता है तो कभी मोक्ष में जाने के बंदरगाह मानव भव में पहुंचा देता है । मानव में भी किसी को सुखी किसी को दुखी किसी को रोगी किसी को निरोगी बना देता है। और इंसान जैसे इंसान को हैवान तक बना देता है इसलिए कहते है आज सभी का जीवन अस्त और व्यस्त है क्योकि कर्म राजा जबरदस्त है । कोई तीरा तो कोई गिरा यह सब धमाल और कमाल कर्म राजा का है ।
ज्ञानी गुरु भगवंत कहते है कि छोटी छोटी बातों में मत बांधो कर्म यही सिखाता है धर्म । पाप से नही बचे तो आज का छोटा सा पाप कर्म, अनेको दुःख लेकर आएगा । इस उत्तम मनुष्य भव को प्राप्त करके अपनी आत्मा के लिए कुछ भी साधना ना करी तो कर्म के उदय में आने पर कोई बचाने नहीं आएगा । सभी सोचते हैं घर परिवार समाज बंधु सब मेरे हैं परंतु इस संसार में कोई किसी का नहीं होता कर्म के उदय से लेन-देन पूर्ण हो जाने पर कौन पिता कौन पुत्र कौन पति कौन पत्नी कौन माता कौन बहिन कोई किसी को पहचानता तक नहीं है ।
राज्य लक्ष्मी के लोभ में पुत्र कोणिक ने पिता को कैद करवाया , रोज एक पैर पर खड़ा करके नंगी पीठ पर नमक के पानी में भिगोए चाबुक से पाँच सौ कोड़े मारता था । कहां गई पुत्र और पिता की सगाई ! मयणरेहा के रूप में आसक्त बनकर मणिरथ ने युग बाहु की हत्या कर दी कहां गया भाई भाई का सबंध ! परदेशी राजा को सूर्यकांता रानी ने जहर दिया कहां गई पति-पत्नी की सगाई ! दीर्घ राजा के मोह में पड़ी चुलनी रानी ने अपने इकलौते लाड़ले पुत्र ब्रह्मदत्त कुमार को मार दिया । जब ऋणानुबन्द सबंध पूरे हो जाते हैं तब कोई किसी को पहचानता तक नहीं और उसी घर में माता और पुत्र या सगे भाइयों के रूप में जन्म लेकर बदला लेते हैं इसलिए भगवान कहते हैं कि इस जगत में कोई तेरा नही है सब स्वार्थ के रिश्ते है । कर्म करते समय गंभीरता से विचार कर । नही तो जब चिकने कर्मों का उदय आएगा तब तेरी माता भी तेरी नही रहेगी ।
बंधुओ पाप चारो तरफ से करेंगे तो कर्म भी चारो और से हमला करेंगे और दुःख भी चारो तरफ से ही आएंगे । कर्म राजा पर विजय पाना हो तो दुःख से नही पाप से डरना चाहिए । मृत्यु से नही जन्म से डरना चाहिए । आज दिन तक जो जो दुःख और मौत से डरा है वो डूबा है और जो जो पाप और जन्म से डरा है वो इस जग को जीता है । इसलिए दुःख में धीरज , क्षमता और सहनशीलता रखेंगे उतनी ही कर्म निर्जरा होगी । क्योकि वर्तमान के दुख तो नेट प्रेक्टिस है । फाइनल तो महाविदेह में खेलना बाकी है ।
कर्म राजा पर विजय पाने के लिए ज्ञान का नित्य अभ्यास और ज्ञानवंत पुरुषों का विनय करेंगे तो ज्ञानावरणीय कर्म को क्षय कर पाएंगे वैसे ही द्वेष न करे व आसातनाओ से बचकर धर्म के कार्यो में विरोध न करना व बाधक नही बनने से दर्शनावरणीय कर्म , छह काय जीवो पर अनुकंपा कर सभी को साता प्रदान करने से वेदनीय कर्म , क्रोध मान माया लोभ पर नियंत्रण करने से मोहनीय कर्म व किसी को भी अंतराय न देने से अंतराय कर्म को क्षय कर पाएंगे , महाआरंभ महापरिग्रह माया गुढ़ माया झूठ बोलना खोटे माप खोटे तोल न करने से नरक व तिर्यंच गति में जाने से बचेंगे उच्च गति का आयुष्य बन्द होगा , मन वचन काया की सरलता व विसंवाद रहित रहने से अगले भव में अच्छा रूप सौंदर्य मिलेगा उच्च नाम कर्म का बंध होगा व जाती कुल, बल , तप , ज्ञान , लाभ व ऐश्वर्य का अहंकार नही करने से अगले भव में उच्च कुल में जन्म मिलेगा उच्च गौत्र कर्म का बंध करेंगे । कहते है आठ कर्मो से जो करेगा फाइट उनका पथ रहेगा हमेशा ब्राइट ।
इतिहास गवाह रहा है कि परमात्मा की वाणी पर श्रद्धा करके धर्म रुचि अणगार , चण्ड कौशिक जैसी अनंत आत्माओं ने छः काय जीवों के प्रति दया और करुणा बरसाई उन सभी को इसी कर्म राजा ने पाँच पदों में वंदनीय बना दिया । कर्म राजा की करामात अनोखी है और त्रिकाल सत्य है कर्म राजा निर्दोष को छेड़ते नही और दोषी को छोड़ते नही ।